राजस्थान के किसान आंदोलन-3
बीकानेर किसान आंदोलन
➤ बीकानेर के किसान आंदोलन को 2 हिस्सों में बांटा जा सकता है।
➤ पहले हिस्से में आंदोलन का कारण गंगनहर से सम्बन्धित समस्याओं के कारण हुआ और दूसरे में आंदोलन का कारण बीकानेर से जुड़े जागीरी गांव बने।
➤ सिंचाई के लिए 1929 में नहरी क्षेत्र के जमीदार संघ ने यह आंदोलन प्रारंभ किया।
➤ विवाद का कारण सिंचाई के लिए वसूला जाने वाला कर आबियाना बना।
➤ किसानो की शिकायत थी कि कर वसूलने के बाद भी उन्हें सिंचाई के लिए पूरा पानी नहीं दिया जा रहा है।
➤ संघर्ष के लिए 19 अप्रैल 1929 में जमीदार संघ का गठन किया गया।
➤ सिख किसान दरबार सिह को जमींदार संघ का अध्यक्ष बनाया गया।
➤ 10 मई 1929 को श्री गंगानगर में संघ की बैठक में एक मांग पत्र तैयार किया गया। जिसके लिए आजादी तक संघ संघर्ष करता रहा। आजादी के बाद किसानों की मांगे मान ली गई।
➤ आंदोलन का दूसरा चरण 1934 में शुरू हुआ जब किसानों ने जागीरदारों द्वारा लगाई गई लागतों के विरोध करना शुरू किया।
➤ किसानो ने बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह को एक प्रार्थना पत्र देकर लागों को युक्ति संगत करने का आग्रह किया और मांगे न माने जाने की सूरत में लगान नहीं देने का प्रस्ताव दिया।
➤ महाराजा गंगासिह ने लगान नहीं देने को गैर जमानती अपराध घोषित कर दिया।
➤ आंदोलन को दबाने के लिए आंदोलन के नेता जीवन चौधरी पर 100 रूपये का जुर्माना लगाया गया और निजी संपति जब्त कर ली गई।
➤ 1937 में उदासर के किसानों के समर्थन में बीकानेर प्रजामंडल भी आ गया।
महाजन ठिकाने का किसान आंदोलन
➤ महाजन बीकानेर राज्य का ’प्रथम श्रेणी’का ठिकाना था और इस ठिकाने को विशेष प्रशासनिक अधिकार प्राप्त थे।
➤ महाजन के किसानों ने बीकानेर के दीवान को शिकायत की कि भूराजस्व तथा चराई की दरें खालसा क्षेत्र के अनुसार निश्चित की जाए।
➤ शुरूआत में रियासत ने इसे गंभीरता से नहीं लिया लेकिन फिर किसानों के असंतोष और आंदोलन को ध्यान में रखते हुए बीकानेर रियासत ने बकाया राशि में छूट की घोषणा की।
➤ इस कारण ’दिसंबर 1942 के अंत तक महाजन ठिकाने के किसानों का आंदोलन शांत हो गया।
दूधवाखारा किसान आंदोलन
➤ दूधवाखारा चूरु जिले में स्थित है और वहां के जागीरदार सूरजमल के अत्याचार के विरोध में हनुमान सिह और मद्याराम वैद्य के नेतृत्व में किसानों ने आंदोलन किया।
➤ सूरजमल ने हनुमान सिह को अनुपगढ़ किले में कैद कर लिया।
➤ हनुमान सिह ने अनूपगढ़ किले में 65 दिनों तक भूख हड़ताल की थी।
➤ 1944 में यहां के जागीरदारों ने बकाया राशि के भुगतान का बहाना कर अनेक किसानों को उनकी जोत से बेदखल कर दिया गया।
➤ चौधरी हनुमान सिंह के नेतृत्व में किसानों का एक प्रतिनिधिमंडल 2 जून 1945 को माउंट आबू में महाराजा सार्दुल सिंह से मिला।
➤ हनुमान सिंह को रतनगढ़ में गिरफ्तार कर उनके विरुद्ध राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया था। विरोध के बाद 4 जनवरी 1948 को उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया।
➤ बीकानेर के किसान आंदोलन के इतिहास में दूधवाखारा का किसान आंदोलन सबसे अधिक महत्वपूर्ण और निर्णायक था।
➤ दूधवाखारा आंदोलन में महिलाओं ने भी हिस्सा लिया था।
➤ दूधवाखारा किसान आंदोलन में महिलाओं का नेतृत्व खेतु बाई ने किया था।
बीकानेर राज्य प्रजा परिषद के नेतृत्व में किसान आंदोलन
➤ बीकानेर प्रजा परिषद के नेतृत्व में ’दूसरा किसान आंदोलन रायसिंहनगर की घटना’ को लेकर हुआ था।
➤ 1 जुलाई 1946’ को प्रजा परिषद् के नेतृत्व में रायसिहनगर में एक जुलूस निकल रहा था इस जुलूस पर पुलिस ने कार्रवाई की।
➤ इस कार्रवाई में कार्यकर्ता बीरबल सिंह की मृत्यु हो गई।
➤ प्रजा परिषद ने 6 जुलाई 1946 को बीकानेर राज्य में किसान दिवस मनाया।
कांगड काण्ड
➤ बीकानेर के किसान आंदोलन के इतिहास में कांगड़ कांड (रतनगढ) का महत्वपूर्ण योगदान है। यह आंदोलन जागीरदारों के अत्याचारों के खिलाफ किया गया किसान आंदोलन था।
➤ 1946 मे खरीफ की फसल खराब होने के कारण अकाल की स्थिति पैदा हो गई थी।
➤ अकाल पड़ने के बाद भी 1946 में किसानों से कर वसूली का प्रयास किया गया था।
➤ इस कारण कांगड़ के लगभग 35 किसान महाराजा के पास बीकानेर पहुंचे।
➤ इससे नाराज होकर जागीरदारों के आदमियों ने उस गांव के किसानों पर अमानवीय अत्याचार किए। इसकी सब तरफ कड़ी आलोचना की गई।
➤ इससे नाराज होकर जागीरदारों के आदमियों ने उस गांव के किसानों पर अमानवीय अत्याचार किए। इसकी सब तरफ कड़ी आलोचना की गई।
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