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भील जनजाति संपूर्ण विवरण : Bhil Tribe Complete Information-1

भील जनजाति का इतिहास एवं संस्कृति


भील जनजाति :-
                      भील भारत की सबसे प्राचीन व मीणा जनजाति के बाद राजस्थान की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति हैं। भील जनजाति एक योद्धा जनजाति के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। वैसे तो भील जनजाति लगभग संपूर्ण राजस्थान में पायी जाती हैं ; बाड़मेरजालोरसिरोहीपालीकोटाझालावाड़ आदि जिलों में लेकिन विशेषकर दक्षिणी राजस्थान के उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ जिलों में भील जनजाति पायी जाती हैं। भील जनजाति उदयपुर जिले में सर्वाधिक हैं।
राजस्थान के अलावा भील जनजाति गुजरात ,महाराष्ट्र तथा मध्यप्रदेश राज्यों में भी पाई जाती हैं। राजपूती राज्यों के उदय से पहले राजस्थान में जिस प्रकार मीणाओं, गुर्जरों व जाटों का शासन था; उसी प्रकार दक्षिणी राजस्थान व हाड़ौती अंचल में भीलों के कई छोटे-छोटे राज्य थे। 


भील शब्द की उत्पत्ति

प्राचीन संस्कृत साहित्य में सभी वनवासी जातियों के लिये भील शब्द प्रयुक्त हुआ हैं। इस प्रकार प्राचीन संस्कृत साहित्य में उस वर्ग विशेष के लिये भील संज्ञा प्रयुक्त हुआ हैं जो धनुष बाण से शिकार करके अपना जीवन यापन करते थे।
 मेवाड़ ,गोडवाड़,बांगड़ प्रदेश में भील, मीणा, डामोर और गरासिया जनजाति निवास करती है । इन सभी जनजातियों के लिए विद्वान, लेखक एवं पत्रकार भील शब्द ही प्रयुक्त करते हैं।
लोगों की सामान्य धारणा है कि उपर्युक्त प्रदेशों में केवल भील जनजाति ही निवास करती हैं।

महाभारत काल में भीलों को निषाद कहा जाता था।

कर्नल जेम्स टॉड ने भीलों को 'वन पुत्र' कहा हैं।

रोने जैसे प्रसिद्ध लेखक ने अपनी पुस्तक 'वाइल्ड ट्राइब्स ऑफ़ इंडिया' (wild Tribes Of India ) में भीलों का मूलनिवास मारवाड़ बताया हैं।

डॉ. डी. एन. मजूमदार ने अपनी पुस्तक 'रेसेज एंड कल्चरल ऑफ़ इंडिया' (races And Cultural Of India ) में भील जनजाति का सम्बन्ध प्राचीन 'नेग्रिटो' प्रजाति से बताया हैं।

 भील जनजाति की उत्पत्ति के संबंध में दो मत प्रचलित हैं।

 1.प्रथम मत :-
                 भील द्रविड़ भाषा का शब्द है जो बिल शब्द से बना है विद्वानों के अनुसार भील शब्द की उत्पत्ति द्रविड़ भाषा के बिल शब्द से हुई है जिसका अर्थ है तीर-कमान
तीर-कमान भील जनजाति का मुख्य अस्त्र था इसलिए इस जनजाति को भील कहा जाने लगा।

 2.द्वितीय मत :-
                   भील जनजाति भारत की सबसे प्राचीनतम जनजाति हैं। पुरातन काल में भील जनजाति की गणना राजवंशों में की जाती थी जिसे विहिल राजवंश के नाम से जाना जाता था। विहिल राजवंश का शासन पहाड़ी इलाकों में था।
ये मत भी सच हो सकता हैं क्योंकि आज भी ये जनजाति ज्यादातर पहाड़ी इलाकों में निवास करती हैं।

इस संदर्भ में एक कहावत भी प्रचलित है कि संसार में केवल साढ़े तीन राजा ही प्रसिद्ध हैं। पहला इंद्र राजा,दूसरा राजा,तीसरा भील राजा और बिंद (दूल्हा)राजा (आधा)



भील जनजाति की भाषा

भील जनजाति मेवाड़ी,भीली तथा वागड़ी भाषा का प्रयोग करती हैं।

 जी. एस. थॉमसन ने 1895 ई. में भीली भाषा की व्याकरणकी रचना की। जिसमें इन्होंने इस समुदाय की भाषा को गुजराती से सम्बंधित बताया हैं।


भील जनजाति की परिवार व्यवस्था
भील जनजाति में परिवार प्राचीनकाल से ही पितृसत्तात्मक होते हैं और ये जनजाति आज भी संयुक्त परिवार में रहना पसंद करती हैं
 भील जनजाति एक योद्धा जनजाति के रूप में जानी जाती हैं। भील जाति के लोग परंपरागत रूप से बहुत अच्छे तीरंदाज होते हैं।

प्रसिद्ध इतिहासकार टॉलमी ने भीलों को फिलाइट कहा हैं।

मेवाड़ राज्य की स्थापना के साथ ही मेवाड़ के महाराणाओं को भील जाति का निरन्तर सहयोग मिलता रहा। महाराणा प्रताप अकबर के विरुद्ध भीलों के सहयोग से निरन्तर संघर्ष कर अकबर को परेशान करते रहें। मेवाड़ के महाराणा इसी जनजाति के सहयोग से मुगलों का वर्षों तक सफलतापूर्वक सामना करते रहें
प्रताप की सेना में भीलू राणा और कई अन्य योद्धा थे। यही कारण हैं कि भील जाति की सेवाओं के सम्मान स्वरुप मेवाड़ के राज चिह्न में एक और राजपूत तथा दूसरी और भीलू राणा अंकित हैं
मेवाड़ के महाराणा भीलों के अंगूठे के खून से अपना राजतिलक करवाते थे। अंग्रेजी शासन के समय मेवाड़ भील कोर का गठन किया गया जो आज भी विद्यमान हैं। 

भीलों के राज्य

राजस्थान में भीलों ने कई राज्यों में शासन किया। दक्षिणी राजस्थान एवं हाड़ौती प्रदेश में भीलों के कई छोटे-छोटे राज्य थे। जिसे आगे बताया जा रहा हैं।

कोटा :-
           कोटा राज्य भील जाति का प्रमुख केंद्र था यहां पर कई वर्षों तक भील जातियों का शासन रहा। कोटा के पास स्थित अकेलगढ़ का पुराना किला तथा आसलपुर की ध्वस्त नगरी पर भीलों का शासन था। यहां के भील सरदारों को कोटियाउपनाम (उपाधि) से जाना जाता था। बूंदी के शासक समरसिंह के पुत्र जैत्रसिंह ने 1274 में कोटिया भील को मार कर हाडा वंश की नींव रखी तथा कोटिया सरदार के नाम पर कोटा राज्य की स्थापना की

मनोहर थाना :-
                     मनोहर थाना (झालावाड़) के आसपास 1675 तक भील जाति के चक्रसेन का राज्य था। कोटा के राजा भीमसिंह ने भील राजा चक्रसेन को हराकर उसके राज्य पर अपना अधिकार कर लिया।

डूंगरपुर :- 
              डूंगरपुर में डूंगरिया भील का अधिकार था। वीर विनोद ग्रन्थ (श्यामलदास) के अनुसार चित्तौड के राजा महाप (रतन सिंह का पुत्र) ने डूंगरिया भील को मारकर डूंगरपुर पर अधिकार कर लिया।

बांसवाड़ा :-
             बांसवाड़ा राज्य बांसिया नामक भील के अधिकार में था। जगमाल (डूंगरपुर के उदयसिंह के द्वितीय पुत्र) ने इस राज्य को जीतकर अपना अधिकार कर लिया।

कुशलगढ़ :-
                 कुशलगढ़ राज्य पर कुशला भील का आधिपत्य था।

रामपुरा और भानपुरा :-
                                मेवाड़ और मालवा के बीच का क्षेत्र आमद के नाम से जाना जाता हैं। आमद प्रदेश में रामपुरा और भानपुरा नामक राज्यों में क्रमशः रामा और भाणा नामक भीलों का अधिकार था। चंद्रावतों ने इन्हें हराकर अपना अधिकर लिया।

गढ़ मांदलिया :-
                   अजमेर मेरवाड़ा क्षेत्र में स्थित मीणाय ठिकाने पर भी मांदलिया भीलों का राज्य था । मांदलिया भीलों द्वारा बनाया किला आज भी स्थित हैं जो गढ़ मांदलिया के नाम से प्रसिद्ध हैं।

जवास जगरगढ़ :-
                         मेवाड़ के जवास जगरगढ़ पर भी भील राजाओं का शासन था। जगरगढ़ को जोगराज ने बसाया था जिस पर खींची राजाओं ने अपना अधिकार कर लिया।

ईडर :-
          गुजरात के ईडर पर सोढ़ा गोत्र के सावलिया भील का शासन था । राठौड़ों ने भीलों को हराकर ईडर पर अपना अधिकार कर लिया। 

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