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Forts in Rajasthan : राजस्थान के प्रमुख किले

forts in Rajasthan: राजस्थान के प्रमुख किले     राजस्थान के राजपूत नगरों और महलों  का निर्माण पहाडि़यों पर किया करते थे , क्योंकि वहां शत्रुओं के विरूद्ध प्राकृतिक सुरक्षा के साधन थे।   इतिहास में शुक्रनीति के अनुसार दुर्गो की नौ श्रेणियों का वर्णन मिलता है-
Forts In Rajasthan


राजस्थान के प्रमुख किले   

राजस्थान के राजपूत नगरों और महलों  का निर्माण पहाडि़यों पर किया करते थे , क्योंकि वहां शत्रुओं के विरूद्ध प्राकृतिक सुरक्षा के साधन थे।

इतिहास में शुक्रनीति के अनुसार दुर्गो की नौ श्रेणियों का वर्णन मिलता है-

(1) एरण  दुर्ग
इस प्रकार के दुर्ग खाई, कांटों तथा कठोर पत्थरों से युक्त होते है,जहां पहुंचना कठिन होता है। जैसे - रणथम्भौर दुर्ग।

(2) पारिख  दुर्ग
इस प्रकार के दुर्ग जिसके चारों ओर खाई हो। जैसे - लोहगढ़/भरतपुर दुर्ग इस श्रेणी मे आते है।

(3) पारिध  दुर्ग
इस प्रकार के दुर्ग ईंट,पत्थरों से निर्मित मजबूत परकोटा-युक्त होते है। जैसे - चित्तौड़गढ दुर्ग।

(4) वन/ओरण  दुर्ग
इस प्रकार के दुर्ग चारों ओर वन से ढ़के  हुए होते है। जैसे - सिवाणा दुर्ग।

(5) धान्व  दुर्ग
इस प्रकार के दुर्ग जो चारों ओर से रेत के ऊंचे टीलों से घिरे  होते है। जैसे - जैसलमेर दुर्ग।

(6) जल /ओदक
इस प्रकार के दुर्ग पानी से घिरे हुए होते है। जैसे - गागरोन दुर्ग।

(7) गिरी  दुर्ग
इस प्रकार के दुर्ग एकांत में पहाड़ी पर होते है तथा जल संचय का प्रबंध होता है। जैसे- कुम्भलगढ़ दुर्ग।

(8) सैन्य  दुर्ग
इस प्रकार के दुर्ग जिसकी व्यूह रचना चतुर वीरों के होने से अभेद्य हो,वह सैन्य दुर्ग माना जाता हैं।

(9) सहाय  दुर्ग
इस प्रकार के दुर्ग जिसमें सदा साथ देने वाले बंधुजन  हो।

राजस्थान के प्रमुख किले / दुर्ग क्रमानुसार

(1) चित्तौड़गढ़ का किला

चित्तौड़गढ़ का किला चित्रकुट पहाड़ी पर बना है। यह दुर्ग राजस्थान का सबसे प्राचीनतम गिरी दुर्ग है। चित्तौड़गढ़  दुर्ग का निर्माण चित्रांगद मौर्य ने 8 वीं सदी में करवाया था । चित्तौड़गढ़ दुर्ग को राजस्थान का गौरव, राजस्थान के दक्षिण पूर्व का प्रवेश द्वार तथा दुर्गों का सिरमौर कहा जाता हैं।
इतिहास में इस किले के बारे में कहा जाता है कि “गढ तो चित्तौड़गढ बाकी सब गढैया”।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा दुर्ग है।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग में दर्शनीय स्थल

(A) विजय स्तम्भ / कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति :-

विजय स्तम्भ का निर्माण मेवाड के महाराणा कुम्भा ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर अपनी विजय के उपलक्ष्य में 1439-40 में करवाया  था। जो भगवान विष्णु को समर्पित हैं,इसलिए इसे विष्णु स्तम्भ भी कहा जाता है। विजय स्तम्भ 9 मंजिला तथा 120 फीट ऊंचा है।
  • इस स्तम्भ के चारों ओर हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां अंकित है।
  • विजय स्तम्भ को भारतीय इतिहास में मूर्तिकला का विश्वकोष या अजायबघर भी कहते हैं।
  • विजय स्तम्भ का शिल्पकार जैता, नापा, पौमा और पूंजा आदि को माना जाता है।
  • कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति का प्रमुख रचयिता कवि अत्रि तथा उसके पुत्र महेश को माना जाता है।
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(B) जैन कीर्ति स्तम्भ

चित्तौडगढ़ किले में स्थित जैन कीर्ति स्तम्भ का निर्माण अनुमानतः बघेरवाल जैन जीजा द्वारा 11 वीं या 12 वी. शताब्दी में करवाया गया।
जैन कीर्ति स्तम्भ  75 फुट ऊंचा और 7 मंजिला है। दुर्ग के बाहर बाघसिंह की छत्तरी है।
जैन कीर्ति स्तम्भ में कुम्भ श्याम मंदिर, मीरा मंदिर ओर पदमिनी महल, फतेह प्रकाश संग्रहालय तथा कुम्भा के महल आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल है।

(3) चित्तौड़गढ़ किले में  साके  

(1).प्रथम साका 
यहाँ सन् 1303 ई. में मेवाड़ के महाराणा रावल रतनसिंह चित्तौड़ का प्रथम साका हुआ।
चित्तौडगढ़ दुर्ग पर आक्रमण करने वाला अल्लाउद्दीन खिलजी था। उसने दुर्ग का नाम बदलकर खिज्राबाद रखा।
चित्तौड़गढ के प्रथम साके में रतन सिंह के साथ सेनानायक गोरा व बादल शहीद हुए।

(2).दूसरा साका
यह साका 1534 ई. में मेवाड़ के शासक विक्रमादित्य के समय हुआ। इस साके के समय आक्रान्ता बहादुर शाह था । युद्ध के उपरान्त महाराणी कर्मावती ने जौहर किया था।

(3).तृतीय साका
यह सन् 1567 ई. में मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह के समय हुआ। इस समय मुगल सम्राट अकबर ने आक्रमण किया था। चित्तौडगढ़ का तृतीय साका जयमल राठौड़ और पता सिसोदिया के पराक्रम और बलिदान के लिए प्रसिद्ध है। {राजस्थान पुलिस कांस्टेबल परीक्षा के सबसे बेहतरीन किताबें-Click Here}

(2) अजमेर का किला / अजयमेरू दुर्ग (तारागढ़)

अजमेर का किला बीठली पहाड़ी पर बना होने के कारण इस किले को गढ़बीठली के नाम से भी जाना जाता है।
अजयमेरू दुर्ग गिरी श्रेणी का दुर्ग है। यह दुर्ग पानी के झालरों के लिए प्रसिद्ध है। अजमेर के किला का निर्माण अजमेर नगर के संस्थापक चौहान नरेश अजयराज ने करवाया।
मेवाड़ के राणा रायमल के युवराज (राणा सांगा के भाई) पृथ्वीराज (उड़ाणा पृथ्वी राज) ने अपनी तीरांगना पत्नी तारा के नाम पर इस दुर्ग का नाम तारागढ़ रखा।
रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध रानी उमा दे भटियाणी (राव मालदेव की पत्नी) आजीवन इसी दुर्ग में रही।
तारागढ़ दुर्ग की अभेद्यता के कारण विशप हैबर ने इसे “राजस्थान का जिब्राल्टर ” अथवा  “पूर्व का दूसरा जिब्राल्टर”  कहा है।
इतिहासकार हरबिलास शारदा ने “अखबार-उल-अखयार” को उद्घृत करते हुए लिखा है कि तारागढ़ कदाचित भारत का प्रथम गिरी दुर्ग है।
तारागढ़ के भीतर प्रसिद्ध मुस्लिम संत मीरान साहेंब (मीर सैयद हुसैन) की दरगाह स्थित है।

(3) तारागढ का किला (बूंदी)

तारागढ दुर्ग का निर्माण देवसिंह हाड़ा / बरसिंह हाड़ा ने करवाया। इसकी तारे जैसी आकृति के कारण इस दुर्ग का नाम तारागढ़ पड़ा। यह दुर्ग “गर्भ गुंजन तोप” के लिए प्रसिद्ध है। यहा पर रंग विलास (चित्रशाला) स्थित हैं।  इस दुर्ग में रंग विलास चित्रशाला का निर्माण उम्मेद सिंह हाड़ा ने किया।

(4) रणथम्भौर का किला (सवाई माधोपुर)

रणथम्भौर का किला:- (सवाई माधोपुर) जिले में स्थित यह किला अरावली की पहाड़ियों से घिरा हुआ एरण दुर्ग है। रणथम्भौर का किला दूर से देखने पर दिखाई नहीं देता है। रणथम्भौर का किला जगत/जयंत द्वारा निर्मित किला है। रणथम्भौर किले के बारें में अबुल फजल ने लिखा है कि  "अन्य दुर्ग नंगे है जबकि यह दुर्ग बख्तरबंद है।”
रणथम्भौर दुर्ग में दर्शनीय स्थल
(a) रनिहाड़ तालाब  (b) जोगी महल (c) सुपारी (d) जोरां-भोरां/जवरां-भवरां के महल (e) त्रिनेत्र गणेश (f) 32 खम्भों की छत्तरी (g) रानी महल (h) हम्मीर का महल  

(5) जोधपुर का किला (मेहरानगढ़)

राठौड़ों के शौर्य के साक्षी मेहरानगढ़ किले की नींव मई,1459 में रखी गई थी । मेहरानगढ़ दुर्ग चिडि़याटूक पहाडी पर बना है। इस दुर्ग की मोर जैसी आकृति के कारण यह किला मयूरगढ़ भी कहलाता है।

मेहरानगढ़ दुर्ग में दर्शनीय स्थल
(a)मेहरानगढ़ दुर्ग में चामुण्डा माता मंदिर - यह मंदिर राव जोधा ने बनवाया।
1857 की क्रांति के समय इस मंदिर के क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण इसका पुनर्निर्माण महाराजा तखतसिंह ने करवाया।
(b)मेहरानगढ़ दुर्ग में चौखलाव महल- राव जोधा द्वारा निर्मित महल है।
(c)मेहरानगढ़ दुर्ग में फूल महल – राव अभयसिंह राठौड़ द्वारा निर्मित महल है।
(d)मेहरानगढ़ दुर्ग में फतह महल – इनका निर्माण अजीत सिंह राठौड ने करवाया।
(e)मेहरानगढ़ दुर्ग में मोती महल – इनका निर्माता सूरसिंह राठौड़ को माना जाता है।
(f)मेहरानगढ़ दुर्ग में भूरे खां की मजार स्थित है।
(g)मेहरानगढ़ दुर्ग में महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश (पुस्तकालय) स्थित है।
(h)मेहरानगढ़ दुर्ग में दौलतखाने के आंगन में महाराजा तखतसिंह द्वारा विनिर्मित एक शिंगगार चौकी (श्रृंगार चौकी) है जहां जोधपुर के राजाओं का राजतिलक होता था।
(i)दुर्ग के लिए प्रसिद्ध उक्ति – ”जबरों गढ़ जोधाणा रो”

Note:ब्रिटिश इतिहासकार किप्लिन ने इस दुर्ग के लिए कहा है कि इस दुर्ग का निर्माण देवताओ, फरिश्तों, तथा परियों के माध्यम से हुआ है।
दुर्ग में स्थित प्रमुख तोपें- 1.किलकिला 2.शम्भू बाण 3. गजनी खां 4.चामुण्डा 5.भवानी 

(6)जैसलमेर का किला (सोनारगढ़ दुर्ग)

सोनारगढ़ किले को उत्तर भड़ किवाड़ कहते है।
सोनारगढ़ दुर्ग धान्व व गिरी श्रेणी का दुर्ग है।
सोनारगढ़ का किला त्रिकुट पहाड़ी/ गोहरान पहाड़ी पर बना है।
सोनारगढ़ दुर्ग  के अन्य नाम – गोहरानगढ़ , जैसाणागढ़

सोनारगढ़ दुर्ग की स्थापना - राव जैसल भाटी के द्वारा 1155 ई. में हुआ। इस दुर्ग के निर्माण में चूने का प्रयोग नहीं हुआ है। इसमे पीले पत्थरों का प्रयोग होने के कारण यह स्वर्णगिरि भी कहलाता है। सोनारगढ़ दुर्ग में 99 बुर्ज है। सोनारगढ़ दुर्ग राजस्थान में चित्तौड़गढ के पश्चात् सबसे बडा "लिविंग फोर्ट" है।
सोनारगढ़ दुर्ग (जैसलमेर दुर्ग ) की सबसे प्रमुख विशेषता इसमें ग्रन्थों का एक दुर्लभ भण्डार है जो जिनभद्र कहलाता है। सन् 2005 में इस दुर्ग को वर्ल्ड हैरिटेज सूची में शामिल किया गया। आस्कर विजेता फिल्म "सत्यजीतरे” इसी दुर्ग पर फिल्माई गई है ।

सोनारगढ़ दुर्ग में ढाई साके {राजस्थान की महत्वपूर्ण प्रथा ) हुए है-
(a) पहला साका दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलज्जी व भाटी शासक मूलराज के मध्य युद्ध के समय हुआ।
(b)दूसरे साके में फिरोज शाह तुगलक के आक्रमण के समय रावलदूदा व त्रिलोक सिंह ने वीरगति प्राप्त की।
(c)जैसलमेर का तीसरा साका (अर्द्ध साका) राव लूणकरण के समय में 1550 ई. में हुआ। 

(7)अजमेर का किला (मैग्जीन दुर्ग)

मैग्जीन दुर्ग स्थल श्रेणी मे आता है। इसका निर्माण मुगल सम्राट अकबर ने करवाया था। इस दुर्ग को ”अकबर का दौलतखाना” के रूप में भी जाना जाता है। यह दुर्ग पूर्णतः मुस्लिम स्थापत्य कला पर आधारित है।

Note: सर टॉमस रो ने सन् 1616 ई. में जहांगीर को अपना परिचय पत्र इसी दुर्ग में प्रस्तुत किया । 

(8)जयपुर का किला (आमेर दुर्ग)

आमेर का दुर्ग गिरी श्रेणी मे आता है। इस दुर्ग का निर्माण 1150 ई. में दुल्हराय कच्छवाह ने करवाया। यह दुर्ग मंदिरों के लिए प्रमुख रूप से प्रसिद्ध है।
इसमे प्रमुख दर्शनीय स्थल है - 
(1).शीला माता का मंदिर (2) सुहाग मंदिर (3 )जगत शिरोमणि मंदिर
हैबर आमेर के महलों की सुंदरता के बारे में लिखता है कि ”मैने क्रेमलिन में जो कुछ देखा है और अल्ब्रह्मा के बारे में जो कुछ सुना है उससे भी बढ़कर ये महल है।” 

(9)जयगढ दुर्ग (जयपुर)

जयगढ दुर्ग  चिल्ह का टिला नामक पहाड़ी पर बना हुआ है। जयगढ दुर्ग का निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह ने करवाया। लेकिन महलों का निर्माण सवाई जयसिंह ने करवाया । इस दुर्ग में तोप ढ़ालने का कारखाना स्थित है। जयगढ दुर्ग में सवाई जयसिंह निर्मित जयबाण तोप पहाडि़यों पर खडी सबसे बड़ी तोप मानी जाती है।
Note: पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरागांधी ने आपातकाल के समय खजाने की प्राप्ति के लिए इस दुर्ग की खुदाई करवाई थी ।

(10)नाहरगढ दुर्ग (जयपुर)

नाहरगढ दुर्ग का निर्माण 1734 में सवाई जयसिंह नें किया। इसके भीतर विद्यमान सुदर्शन कृष्ण मंदिर दुर्ग का पूर्व नाम सूदर्शनगढ़ है। नाहरसिंह भोमिया के नाम पर इस दुर्ग का नाहरगढ रखा गया।
राव माधों सिंह द्वितीय ने अपनी नौ प्रेयसियों के लिए नौलखा महल का निर्माण नाहरगढ़ दुर्ग में करवाया। इस दुर्ग के पास जैविक उद्यान स्थित है।

(11)झालावाड़ का किला (गागरोण दुर्ग)

गागरोण दुर्ग का निर्माण परमार वंश की डोड शाखा के शासक बीजलदेव ने करवाया। डोडा राजपूतों के अधिकार के कारण यह दुर्ग डोडगढ/ धूलरगढ़ नामों से भी जाना गया। “चौहान कुल कल्पद्रुम” के अनुसार खींची राजवंश का संस्थापक देवन सिंह उर्फ धारू ने अपने बहनोई बीजलदेव डोड को मारकर धूलरगढ़ पर अधिकार कर लिया तथा उसका नाम गागरोण रखा। यह दुर्ग बिना किसी नीव के मुकंदरा पहाड़ी की सीधी चट्टानों पर खड़ा स्थापत्य कला का अनुपम उदाहरण है। 
Note: गागरोण दुर्ग कालीसिंध व आहु नदियों के संगम पर बना जल श्रेणी का दुर्ग है।

झालावाड़ किले के साके

पहला साका – सन् 1423 ई. में अचलदास खींची (भोज का पुत्र) तथा मांडू के सुलतान अलपंखा गौरी (होंशगशाह) के मध्यभीष्ण युद्ध हुआ। जीत के बाद दुर्ग का भार शहजादे जगनी खां को सौपा गया। गागरोण के प्रथम साके का विवरण शिवदास गाढण द्वारा लिखित पुस्तक ‘अचलदास खींची री वचनिका’ में मिलता है।
दूसरा साका – सन् 1444 ई. में वाल्हणसी खीची व महमूदखिलजी के मध्य युद्ध हुआ। पाल्हणसी खींची को भीलो ने मार दिया (जब वह दुर्ग से पलायन कर रहा था)। कुम्भा द्वारा भेजे गए धीरा (घीरजदेव) के नेतृत्व में केसरिया हुआ और ललनाओं ने जौहर किया।
Note:महमूद खिलजी ने विजय के उपरांत दुर्ग का नाम बदलकर मुस्तफाबाद रखा।

अकबर ने गागरोण दुर्ग बीकानेर के राजा कल्याणमल पुत्र पृथ्वीराज को जागीर में दिया था जो एक भक्त कवि और वीर योद्धा था।

Note:विद्वानों के अनुसार इस पृथ्वीराज ने अपना प्रसिद्व ग्रन्थ“वेलिक्रिसन रूकमणी री” गागरोण में रहकर लिखा था।

(12) कुम्भलगढ़ का किला (राजसमंद)

कुम्भलगढ़ दुर्ग अरावली की तेरह चोटियों से घिरा, जरगापहाडी पर (1148 मी. ऊंचाई) निर्मित गिरी श्रेणी का दुर्ग है। कुम्भलगढ़ दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने वि.संवत् 1505 ई. में अपनी पत्नी कुम्भलदेवी की स्मृति में बनवाया। इस दुर्ग को मेवाड़ की आंख भी कहा जाता है।
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Note : कुम्भलगढ़ दुर्ग का निर्माण कुम्भा के प्रमुख शिल्पी मण्डन की देखरेख में हुआ।
  • कुम्भलगढ़ दुर्ग की ऊंचाई के बारे में अबुल फजल ने लिखा है कि ” यह इतनी बुलन्दी पर बना हुआ है कि नीचे से देखने पर सिर की पगड़ी गिर जाती है।”
  • कर्नल टॉड ने इस दुर्ग की तुलना “एस्टुकन”से की है।
  • कुम्भलगढ़ दुर्ग  के चारों और 36 कि.मी. लम्बी दीवार बनी हुई है। दीवार की चौड़ाई इतनी है कि चार घुडसवार एक साथ अन्दर जा सकते है। इस लिए इसे ‘भारत की महान दीवार’ भी कहा जाता है।
  • कुम्भलगढ़ दुर्ग के अन्य नाम – कुम्भलमेर कुम्भलमेरू,कुंभपुर मच्छेद और माहोर।
  • कुम्भलगढ दुर्ग के भीतर एक लघु दुर्ग भी स्थित है, जिसे कटारगढ़ कहते है, जो महाराणा कुम्भा का निवास स्थान रहा है।
  • महाराणा कुम्भा की हत्या उनके ज्येष्ठ राजकुमार ऊदा(उदयकरण) ने इसी दुर्ग में की थी ।
  • इस दुर्ग में ‘झाली रानी का मालिका’ स्थित है।
  • उदयसिंह का राज्याभिषेक तथा वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआ है।

 
(13) भरतपुर का किला (बयाना दुर्ग)

बयाना दुर्ग गिरी श्रेणी मे आता है।  बयाना दुर्ग का निर्माण विजयपाल सिंह यादव ने करवाया। बयाना दुर्ग के अन्य नाम- शोणितपुर, बाणपुर, श्रीपुर एवं श्रीपथ है। अपनी दुर्भेद्यता के कारण बादशाह दुर्ग व विजय मंदिर गढ भी कहलाता है।

(14) बाड़मेर का किला (सिवाणा दुर्ग)

सिवाणा दुर्ग गिरी तथा वन दोनों श्रेणी का दुर्ग है। कुमट झाड़ी की अधिकता के कारण इसे कुमट दुर्ग भी कहते है। सिवाणा दुर्ग का निर्माण श्री वीरनारायण पंवार ने छप्पन की पहाडि़यों में करवाया।
इस दुर्ग में दो साके हुए है।
पहला साका – सन् 1308 ई. में शीतलदेव चौहान के समय आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के कारण हुआ।
दूसरा साका – वीर कल्ला राठौड़ के समय अकबर से सहायता प्राप्त मोटा राजा उदयसिंह के आक्रमण के कारण हुआ। यह साका सन 1565 ई. में हुआ।

(15) जालौर का किला (जालौर दुर्ग )

जालौर दुर्ग गिरी श्रेणी में आता है। यह दुर्ग सोन पहाडी पर स्थित दुर्ग है। 
जालौर दुर्ग का प्राचीन नाम – जाबालीपुर दुर्ग तथा कनकाचल।
जालौर दुर्ग के अन्य नाम- सुवर्णगिरी, सोनगढ़।
                                            "दोस्तों,आपको हमारा ये लेख कैसा लगा,आपके जिले में कौनसा किला है,आप हमसे और किस टॉपिक पर लेख प्राप्त करना चाहते है ? कमेंट करके जरुर बतायें। मुझे आपसे बात करके बेहद ख़ुशी होती है।"

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Comments

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सरकारी सेवा में पदस्थापित धीरज व्यास वर्षों से अध्यापन क्षेत्र में सक्रिय है। आप इंटरनेट पर हिंदी भाषा के प्रबल समर्थक होने के साथ साथ शिक्षा के महँगी होने के पुरजोर विरोधी है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को कम शुल्क में छात्रों तक पहुँचाना आपका ध्येय है।

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