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राजस्थान की प्रमुख सिंचाई व नदी घाटी परियोजनाएं

राजस्थान में देश के कुल सतही जल का मात्र 1.16 प्रतिशत जल उपलब्ध है। इंदिरा गांधी नहर राजस्थान की सबसे बड़ी तथा महत्वपूर्ण सिंचाई परियोजना है। बीसलपुर बांध राज्य की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना है। राज्य में न्यूनतम सिंचाई, सिंचित क्षेत्र के आधार पर चुरू में व राज्य के कुल सिंचित क्षेत्रफल के आधार पर राजसमंद जिले में तथा अधिकतम सिंचाई गंगानगर व हनुमानगढ़ में होती है। राजस्थान में गेहूं की फसल का सिंचित क्षेत्र सर्वाधिक है। इसके पश्चात सरसों व कपास का स्थान आता है। राजस्थान में सिंचाई के प्रमुख साधन (Major sources of irrigation in Rajasthan)
Rajasthan Gk in Hindi
राजस्थान में देश के कुल सतही जल का मात्र 1.16 प्रतिशत जल उपलब्ध है। इंदिरा गांधी नहर राजस्थान की सबसे बड़ी तथा महत्वपूर्ण सिंचाई परियोजना है। बीसलपुर बांध राज्य की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना है। राज्य में न्यूनतम सिंचाई, सिंचित क्षेत्र के आधार पर चुरू में व राज्य के कुल सिंचित क्षेत्रफल के आधार पर राजसमंद जिले में तथा अधिकतम सिंचाई गंगानगर व हनुमानगढ़ में होती है। राजस्थान में गेहूं की फसल का सिंचित क्षेत्र सर्वाधिक है। इसके पश्चात सरसों व कपास का स्थान आता है।

राजस्थान में सिंचाई के प्रमुख साधन (Major sources of irrigation in Rajasthan)

1. कुएं एवं नलकूप (Wells and Tubewells)

राज्य में कुओं एवं नलकूपों द्वारा सर्वाधिक सिंचाई (65.67 प्रतिशत) होती है। कुओं एवं नलकूपों से सिंचाई जयपुर (सर्वाधिक), भरतपुर, अलवर, उदयपुर व अजमेर जिलों में होती है। जैसलमेर के पूर्व में स्थित चांधन नलकूप मीठे पानी का थार का घड़ा कहलाता है।

2. नहरें ( Canals) 

भारत में सर्वाधिक सिंचाई नहरों द्वारा लगभग 39 प्रतिशत भाग पर होती है। राजस्थान में 32.84 प्रतिशत क्षेत्र पर नहरों द्वारा सिंचाई एवं 1.02 प्रतिशत क्षेत्र पर अन्य साधनों द्वारा सिंचाई होती है। राज्य में नहरों द्वारा सिंचाई श्रीगंगानगर ( सर्वाधिक), हनुमानगढ़, जैसलमेर, भरतपुर, कोटा, बूंदी, बारां, सिरोही, डूंगरपुर, बांसवाड़ा व चुरू जिलों में होती है।

3. तालाब ( Ponds)

राजस्थान में तालाबों द्वारा 0.47 प्रतिशत सिंचाई होती है। राजस्थान के दक्षिणी एवं दक्षिणी-पूर्वी भागों में तालाबों द्वारा सर्वाधिक सिंचाई होती है। भीलवाड़ा जिले में तालाबों द्वारा सर्वाधिक सिंचाई होती है। उदयपुर, पाली, राजसमंद, चितौड़गढ़, कोटा, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, बूंदी, टोंक आदि अन्य जिले है जहां तालाबों द्वारा सिंचाई होती है। जैसलमेर में तालाबों के स्थान पर खड़ीन का उपयोग किया जाता है।

राजस्थान में बहुउद्देशीय परियोजनाएं (Multi purpose Projects in Rajasthan)

1. इन्दिरा गांधी नहर परियोजना (Indira Gandhi Canal Project)

यह परियोजना विश्व की सबसे बड़ी (मानव निर्मित) सिंचाई परियोजना है। इसे राजस्थान की मरू गंगा व जीवन रेखा भी कहा जाता है। उद्गम स्थल- पंजाब में फिरोजपुर के निकट सतलज व व्यास नदियों के संगम पर बने हरिकै बैराज से। इस परियोजना का शिलान्यास 20 मार्च,1958 को तत्कालीन गृहमंत्री श्री गोविन्द वल्लभ पंत ने किया। आरम्भ में यह परियोजना राजस्थान नहर परियोजना कहलाती थी, लेकिन 2 नवंबर,1984 को इसका नाम बदलकर इन्दिरा गांधी नहर परियोजना रख दिया गया। इस परियोजना का सुझाव बीकानेर रियासत के तत्कालीन सिंचाई इंजीनियर श्री कंवर सेन ने 1948 में अपने अध्ययन बीकानेर राज्य में पानी की आवश्यकताएं में भारत सरकार को दिया था। इन्दिरा गांधी नहर परियोजना का मुख्य उद्देश्य रावी व व्यास नदियों के पानी को राजस्थान के पश्चिमी भाग में सिंचाई, पेयजल एवं अन्य उपयोग में लेने का है। पूर्व उपराष्ट्रपति स्व. डा. एस. राधाकृष्णन ने 11 अक्टूबर, 1961 को नौरंगदेसर वितरिका से सर्वप्रथम जल प्रवाहित कर मरू भूमि के विकास की शुरुआत की गई। इन्दिरा गांधी नहर परियोजना में सर्वाधिक कमाण्ड क्षेत्र क्रमशः जैसलमेर व बीकानेर जिले का है। इन्दिरा गांधी नहर परियोजना के दो भाग हैं- राजस्थान फीडर व मुख्य नहर।
                                       इस परियोजना को दो चरणों में बांटा गया है-

प्रथम चरण

परियोजना के प्रथम चरण के अन्तर्गत 204 किमी. लम्बी राजस्थान फीडर नहर पंजाब के हरिकै बैराज से लेकर हनुमानगढ़ के पास मसीतावाली गांव तक बनाई गई। राजस्थान फीडर नहर की 170 किमी. लम्बाई पंजाब व हरियाणा में तथा शेष 34 किमी. राजस्थान में हैं। इसके अलावा 189 किमी. मुख्य नहर मसीतावाली से लेकर छतरगढ़ तक तथा 3109 किमी. वितरिकाओं का निर्माण प्रथम चरण में किया गया। राजस्थान फीडर की गहराई 21 फीट व राजस्थान की सीमा पर फीडर के तले की चौड़ाई 134 फीट है। प्रथम चरण का समस्त कार्य 1992 में पूर्ण हो चुका है।

द्वितीय चरण

परियोजना के द्वितीय चरण में 256 किमी. लम्बी मुख्य नहर (189 किमी. से 445 किमी. पूगल से जैसलमेर में मोहनगढ़ तक) तथा 5756 किमी. वितरिकाओं तथा 7 लिफ्ट नहरों के निर्माण का कार्य शामिल किया गया है। द्वितीय चरण में वितरण प्रणाली की कुल प्रस्तावित लम्बाई 5959 किमी. है तथा कुल प्रस्तावित सिंचित क्षेत्र 14.10 हैक्टेयर है। 256 किमी. मुख्य नहर का निर्माण कार्य दिसंबर,1986 में सम्पन्न हुआ। 1 जनवरी, 1987 को मोहनगढ़ के समीप नहर के अंतिम छोर तक पानी पंहुच गया। 1998 से इन्दिरा गांधी नहर परियोजना के द्वितीय चरण के अन्तर्गत वनारोपण व चरागाह विकास कार्यक्रम OECF संस्था (जापान) के आर्थिक सहयोग से चलाया जा रहा है। इन्दिरा गांधी नहर परियोजना क्षेत्र में वृक्षारोपण कार्य के लिए वन सेना का गठन किया गया है।
यह परियोजना विश्व की सबसे बड़ी (मानव निर्मित) सिंचाई परियोजना है। इसे राजस्थान की मरू गंगा व जीवन रेखा भी कहा जाता है। उद्गम स्थल- पंजाब में फिरोजपुर के निकट सतलज व व्यास नदियों के संगम पर बने हरिकै बैराज से। इस परियोजना का शिलान्यास 20 मार्च,1958 को तत्कालीन गृहमंत्री श्री गोविन्द वल्लभ पंत ने किया। आरम्भ में यह परियोजना राजस्थान नहर परियोजना कहलाती थी, लेकिन 2 नवंबर,1984 को इसका नाम बदलकर इन्दिरा गांधी नहर परियोजना रख दिया गया। इस परियोजना का सुझाव बीकानेर रियासत के तत्कालीन सिंचाई इंजीनियर श्री कंवर सेन ने 1948 में अपने अध्ययन बीकानेर राज्य में पानी की आवश्यकताएं में भारत सरकार को दिया था। इन्दिरा गांधी नहर परियोजना का मुख्य उद्देश्य रावी व व्यास नदियों के पानी को राजस्थान के पश्चिमी भाग में सिंचाई, पेयजल एवं अन्य उपयोग में लेने का है। पूर्व उपराष्ट्रपति स्व. डा. एस. राधाकृष्णन ने 11 अक्टूबर, 1961 को नौरंगदेसर वितरिका से सर्वप्रथम जल प्रवाहित कर मरू भूमि के विकास की शुरुआत की गई। इन्दिरा गांधी नहर परियोजना में सर्वाधिक कमाण्ड क्षेत्र क्रमशः जैसलमेर व बीकानेर जिले का है। इन्दिरा गांधी नहर परियोजना के दो भाग हैं- राजस्थान फीडर व मुख्य नहर। इस परियोजना को दो चरणों में बांटा गया है-
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इन्दिरा गांधी नहर परियोजना की लिफ्ट नहरें

इन्दिरा गांधी नहर परियोजना में कुल 9 लिफ्ट नहरें है जिनमें से 7 पूर्णतः निर्मित, 1 निर्माणाधीन विजय 1 प्रस्तावित है। मुख्य नहर से एक बार में पानी को 60 मीटर उठाने के लिए लिफ्ट नहरों का निर्माण किया गया है।
  • बीकानेर-लूणकरणसर लिफ्ट नहर- लाभान्वित जिले- श्रीगंगानगर व बीकानेर। नवीन नाम- कंवर सेन लिफ्ट नहर। इसे बीकानेर की जीवन रेखा कहा जाता है। यह सबसे लंबी लिफ्ट नहर है। 
  • साहवा लिफ्ट नहर- लाभान्वित जिले- हनुमानगढ़, बीकानेर, चुरू व झुंझुनूं। नवीन नाम- चौधरी कुम्भाराम लिफ्ट नहर। यह सहायक नहरों सहित सबसे लंबी लिफ्ट नहर है। 
  • गजनेर लिफ्ट नहर- लाभान्वित जिले- बीकानेर व नागौर। नवीन नाम- पन्नालाल बारूपाल लिफ्ट नहर।
  • फलौदी लिफ्ट नहर- लाभान्वित जिले- बीकानेर, जोधपुर व जैसलमेर। नवीन नाम- गुरु जम्भेश्वर (जाम्भौजी) लिफ्ट नहर।
  • कोलायत लिफ्ट नहर- लाभान्वित जिले- बीकानेर व जोधपुर। नवीन नाम- डॉ. करणी सिंह लिफ्ट नहर।
  • पोकरण लिफ्ट नहर- लाभान्वित जिले- जैसलमेर व जोधपुर। नवीन नाम- जयनारायण व्यास लिफ्ट नहर।
  • बांगडसर लिफ्ट नहर- लाभान्वित जिले- बीकानेर, जैसलमेर व बाड़मेर।
इन्दिरा गांधी नहर परियोजना की शाखाएं- 
रावतसर (हनुमानगढ़- इस परियोजना की पहली शाखा), शहीद बीरबल, पूगल, बिरसलपुर, दातोर (बीकानेर), सूरतगढ़ व अनूपगढ (श्रीगंगानगर), सागर मल गोपा, चारवण वाला (जैसलमेर)। अत्यधिक जल प्लावन के कारण इन्दिरा गांधी नहर क्षेत्र में सेम (जल भराव) की समस्या उग्र रूप ले रही है जिसका उपचार भूमि में पर्याप्त मात्रा में जिप्सम का प्रयोग करना है।
इंडो-डच जल निकासी परियोजना - हनुमानगढ़ जिले में सेम से प्रभावित क्षेत्रों में जल निकासी हेतु नीदरलैंड के आर्थिक सहयोग से यह परियोजना चलाई जा रही है।

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2. भाखड़ा नांगल परियोजना-

यह राजस्थान, पंजाब व हरियाणा राज्यों की संयुक्त परियोजना है। इस परियोजना में हिमाचल प्रदेश की हिस्सेदारी केवल जल विद्युत के उत्पादन में है। भाखड़ा नांगल परियोजना में राजस्थान की हिस्सेदारी 15.2 प्रतिशत है। यह परियोजना भारत की सबसे बड़ी बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना है। इस परियोजना में सतलज नदी पर भाखड़ा व नांगल स्थानों पर दो बांध बनाए गए है-

1.भाखड़ा बांध-  

सतलज नदी पर होशियारपुर जिले में भाखड़ा नामक स्थान पर इस बांध का निर्माण किया गया है। यह बांध विश्व का दूसरा एवं एशिया का सबसे ऊंचा कंक्रीट निर्मित गुरुत्व सीधा बांध है। इस बांध की आधारशिला 17 नवंबर, 1955 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने रखी एवं इसका निर्माण अमेरिकी बांध निर्माता हार्वे स्लोकेम के निर्देशन में अक्टूबर, 1962 में पूर्ण हुआ। यह भारत का सबसे ऊंचा (225.55 मीटर) बांध है। भाखड़ा बांध के पीछे बिलासपुर(हिमाचल प्रदेश) बने विशाल जलाशय का नाम गोविन्द सागर है। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस बांध को ‘एक चमत्कारी विराट वस्तु’ एवं बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं को आधुनिक भारत के मंदिर कहा।
यह राजस्थान, पंजाब व हरियाणा राज्यों की संयुक्त परियोजना है। इस परियोजना में हिमाचल प्रदेश की हिस्सेदारी केवल जल विद्युत के उत्पादन में है। भाखड़ा नांगल परियोजना में राजस्थान की हिस्सेदारी 15.2 प्रतिशत है। यह परियोजना भारत की सबसे बड़ी बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना है। इस परियोजना में सतलज नदी पर भाखड़ा व नांगल स्थानों पर दो बांध बनाए गए है-
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2. नांगल बांध- 

यह बांध 1952 में बनकर तैयार हो गया था। भाखड़ा बांध से 12 किमी. दूर नांगल (रोपड़,पंजाब) नामक स्थान पर स्थित है। मुख्य नहरें- सरहिंद नहर, नरवाना नहर, विस्त दोआब नहर। इस परियोजना से राजस्थान में सर्वाधिक सिंचाई हनुमानगढ़ जिले में होती है। इस परियोजना के अंतर्गत कोटड़ा, गंगुवाल व रोपड़ नामक स्थानों पर तीन विद्युत गृह स्थापित किए गए हैं।

 3. माही बजाज सागर परियोजना-

यह राजस्थान व गुजरात की संयुक्त परियोजना है। इस योजना से राज्य के दक्षिणी ज़िलों (मुख्यत: डूंगरपुर बांसवाड़ा) में पेयजल एवं सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। इस परियोजना के निर्माण के लिए दोनों राज्यों के बीच 1966 में एक समझौता हुआ। इस परियोजना में राजस्थान का 45 प्रतिशत तथा गुजरात का 55 प्रतिशत हिस्सा है। इस परियोजना से सर्वाधिक लाभान्वित जिला बांसवाड़ा है। माही बजाज सागर बांध बांसवाड़ा के बांदरखेड़ा नामक स्थान पर निर्मित 3109 मीटर लंबा बांध है। जिसे 1983 में बनाया गया। परियोजना के द्वितीय चरण में कागदी पिकअप बांध का निर्माण किया गया। गुजरात में माही नदी पर कडाना बांध बनाया गया है। इस परियोजना में दो विद्युत इकाईयों का निर्माण किया गया है। इन इकाइयों की विद्युत उत्पादन क्षमता 140 मेगावाट है। इस परियोजना द्वारा उत्पादित सम्पूर्ण विद्युत राजस्थान को मिलती है।

 4. व्यास परियोजना-

सतलज, रावी व व्यास नदियों के पानी का उपयोग करने हेतु पंजाब, हरियाणा व राजस्थान की सम्मिलित परियोजना है। इस परियोजना में व्यास नदी पर हिमाचल प्रदेश में दो बांध बनाए गए हैं-
1. पंडोह बांध- इस बांध से व्यास सतलज लिंक परियोजना हेतु लिंक नहर निकाली गई है।
2.पोंग बांध- राजस्थान में रावी व्यास नदियों के पानी में अपने हिस्से का सर्वाधिक पानी इसी बांध से प्राप्त होता है। पोंग बांध का मुख्य उद्देश्य इन्दिरा गांधी नहर परियोजना को शीतकाल में जल की आपूर्ति करना है। इस परियोजना के अन्तर्गत देहर में 990 मेगावाट तथा पोंग में 384 मेगावाट के विद्युत गृह स्थापित किए गए हैं। इनसे राजस्थान को क्रमशः 20 प्रतिशत तथा 59 प्रतिशत विद्युत प्राप्त होगी।

रावी- व्यास जल विवाद-  

राजीव गांधी लोंगोवाल समझौते के तहत रावी-व्यास नदी जल-विवाद का हल निकालने के लिए 26 जनवरी, 1986 को भारत सरकार ने इराडी आयोग का गठन किया जिससे राजस्थान के लिए 86 लाख एकड़ फुट पानी निर्धारित किया गया। भारत व पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से 19 सितंबर, 1960 को सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए जिसमें भारत को रावी, व्यास व सतलज नदियों का पूरा पानी उपयोग में लेने का अधिकार प्राप्त हुआ।
अन्तर्राज्यीय जल समझौता 1955- राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली एवं पंजाब राज्यों के बीच रावी-व्यास पानी के विभाजन के संबंध में समझौता हुआ। राजस्थान को 5.5 MAF (55 लाख एकड़ फुट) पानी प्राप्त हुआ।

5. सिद्धमुख-नोहर सिंचाई परियोजना-

यूरोपियन आर्थिक समुदाय के आर्थिक सहयोग से प्रारंभ इस परियोजना का शिलान्यास 5 अक्टूबर, 1989 को राजीव गांधी द्वारा भिरानी गांव के समीप किया गया। इस परियोजना से हनुमानगढ़ जिले की नोहर व भादरा तहसील तथा चुरू जिले की राजगढ़ व तारानगर तहसीलों के कुल 113 गांवों में सिंचाई की जा रही है। पोकरण में परमाणु परीक्षण के बाद 1998 में यूरोपियन आर्थिक समुदाय की सहायता पर रोक लगाने के बाद इस परियोजना का संचालन 1999 में नाबार्ड के सहयोग से पुनः प्रारंभ किया गया। इस परियोजना का लोकार्पण 12 जुलाई, 2002 को सोनिया गांधी द्वारा किया गया तथा परियोजना का नाम बदलकर राजीव गांधी सिद्धमुख-नोहर परियोजना कर दिया गया।

6. नर्मदा परियोजना-

नर्मदा बांध परियोजना मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान की सम्मिलित परियोजना है। इस परियोजना में सिंचाई केवल स्प्रिंकलर (फव्वारा) सिंचाई पद्धति द्वारा करने का प्रावधान है। इस परियोजना से जालौर व बाड़मेर जिलों में पेयजल सुविधा उपलब्ध होगी। नर्मदा जल विकास प्राधिकरण द्वारा नर्मदा जल में राजस्थान की हिस्सेदारी 0.50MAF निर्धारित की गई है। इस जल के उपयोग के लिए गुजरात के सरदार सरोवर बांध से नर्मदा नहर निकाली गई है जो 458 किमी. गुजरात में और राजस्थान में 74 किमी. लम्बी है। इस नहर का पानी राजस्थान के जालौर जिले की सांचौर तहसील के सीलू गांव के समीप बने जीरो प्वाइंट तक 18 मार्च,2008 को पहुंच गया था। राजस्थान इस परियोजना की प्रथम इकाई पर कुल लागत का 2.31 प्रतिशत तथा द्वितीय इकाई की कुल लागत का 11 प्रतिशत भाग वहन करेगा।

7. बीसलपुर परियोजना-

इस परियोजना में बनास नदी पर टोंक जिले के टोडारायसिंह कस्बे से 13 किलोमीटर दूर बीसलपुर गांव के पास बीसलपुर बांध बनाया गया है। यह एक कंक्रीट बांध है। 1988-89 में शुरू की गई यह परियोजना राजस्थान की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य जयपुर, अजमेर, टोंक, ब्यावर, किशनगढ़, केकड़ी एवं रास्ते में आने वाले शहरों, कस्बों एवं गांवों को पेयजल उपलब्ध करवाना व टोंक जिले में 81,800 हैक्टेयर कृषि क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करवाना है। बीसलपुर परियोजना के लिए नाबार्ड के ग्रामीण आधारभूत विकास कोष (RIDF) से आर्थिक सहायता प्राप्त हो रही है।

8. जाखम परियोजना-

इस परियोजना का शुभारंभ 1962 में प्रतापगढ़ में छोटी सादड़ी के निकट अनूपपूरा गांव में जाखम नदी पर जाखम बांध बनाकर किया गया। यह बांध राजस्थान का सबसे ऊंचा बांध है जिसकी ऊंचाई 81 मीटर है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य धरियावद और प्रतापगढ़ के गांवों को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करवाना है। जाखम बांध से 13 किलोमीटर दूर नागरिया गांव में एक पिकअप बांध बनाकर दायें व बायें किनारों से दो नहरें निकाली गई है। इस परियोजना का निर्माण कार्य जनजाति उपयोजना के अन्तर्गत किया गया है। मुख्य बांध पर 4.5 मेगावाट जल विद्युत बनाने की दो इकाइयां स्थापित की गई है जिनसे 9 मेगावाट बिजली पैदा होती है।

9. चम्बल परियोजना-

चम्बल राजस्थान की सबसे बड़ी व निरन्तर बहने वाली नदी है। केन्द्रीय जल शक्ति व नौकायन आयोग ने 1950 में इस परियोजना को अन्तिम रूप दिया।

10.ईसरदा बांध-

बनास नदी पर सवाईमाधोपुर जिले के ईसरदा गांव में यह बांध बनाया गया है जिससे जयपुर, टोंक और सवाईमाधोपुर जिलों को पेयजल तथा सवाईमाधोपुर जिले को सिंचाई सुविधा उपलब्ध होती है।

11. पांचना बांध-

इस परियोजना में करौली के समीप भद्रावती, बरखेड़ा,अटा, भैसावट तथा माची (पांच नदियों) के संगम पर पांचना बांध बनाया गया है। यह बालू मिट्टी से बना राजस्थान का सबसे बड़ा बांध है। इसका निर्माण अमेरिका के आर्थिक सहयोग से किया गया है। यह बांध भरतपुर, धौलपुर, करौली और सवाई माधोपुर जिलों में सिंचाई हेतु जल उपलब्ध कराता है।

12. सोम-कमला-अम्बा सिंचाई परियोजना-

इस परियोजना का निर्माण डूंगरपुर जिले में किया गया है और इसका प्रमुख उद्देश्य आदिवासी क्षेत्रों में सिंचाई सुविधा उपलब्ध करवाना है।

13. बिलास सिंचाई परियोजना-

कोटा जिले में मानगढ़ गांव के पास बिलास नदी पर मिट्टी से बना बांध।

14. छापी सिंचाई परियोजना- 

यह परियोजना झालावाड़ जिले की महत्वपूर्ण सिंचाई परियोजना है।यह झालावाड़ जिले की अकलेरा तहसील के दल्हनपुर गांव के पास परवन नदी की सहायक नदी छापी नदी पर स्थित परियोजना है।

15. पीपलदा लिफ्ट सिंचाई परियोजना-

इस परियोजना से सवाईमाधोपुर जिले में चम्बल नदी पर बांध बनाकर सवाईमाधोपुर जिले की खण्डार तहसील को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।

16. जवाई बांध परियोजना-

इस बांध का निर्माण लूनी नदी की सहायक नदी जवाई नदी पर 1956 में किया गया है। यह बांध पाली जिले एरिनपुरा रेलवे स्टेशन के पास स्थित है। जवाई बांध मारवाड़ का अमृत सरोवर कहलाता है। इस बांध से जोधपुर व पाली जिलों को पेयजल आपूर्ति की जाती है। सेई परियोजना के अंतर्गत जवाई बांध में पानी की आवक बढ़ाने हेतु राजस्थान सरकार ने उदयपुर जिले की कोटड़ा तहसील में सेई बांध बनाकर एक सुरंग के माध्यम से इसका जल जवाई बांध में मिलाने का कार्य प्रारंभ किया। जवाई बांध से जालौर व पाली जिले के 41 हजार हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई होती है।

17. अन्य महत्वपूर्ण परियोजनाएं-

  • धौलपुर जिले में पार्वती नदी पर 1959 में बांध बनाया गया।
  • ओरई परियोजना- चितौड़गढ़ जिले में भोपालपुरा गांव के समीप ओरई नदी पर यह बांध बनाया गया है तथा इससे चितौड़गढ़ व भीलवाड़ा जिलों में सिंचाई का लाभ मिलेगा।
  • नाकोड़ा बांध लूनी नदी पर बनाया गया।
  • अजान बांध भरतपुर जिले में गम्भीरी नदी पर बनाया गया है।
  • मोरेल बांध- मोरेल नदी पर जस्टाना कस्बे के निकट सवाईमाधोपुर जिले में यह बांध बनाया गया है।
  • परवन लिफ्ट व सावन भादो परियोजना कोटा जिले में स्थित है।
  • मानसी वाकल परियोजना- इस परियोजना के निर्माण में 70 प्रतिशत राजस्थान सरकार व 30 प्रतिशत हिन्दूस्तान जिंक लिमिटेड का योगदान रहेगा। इस परियोजना के तहत उदयपुर जिले की झाड़ोल तहसील के गोराणा गांव में मानसी वाकल बांध का निर्माण किया गया है।
  • पार्वती जल विद्युत परियोजना- यह राजस्थान व हिमाचल प्रदेश दोनों राज्यों की संयुक्त परियोजना है।
  • मेजा बांध- 1972 में भीलवाड़ा जिले के मांडलगढ़ कस्बे के निकट कोठारी नदी पर निर्मित बांध। इस बांध की पाल पर ‘ग्रीन मांउट’ नामक पार्क विकसित किया गया है।
  • बंध बरेठा बांध- 1897 में महाराजा रामसिंह के समय भरतपुर जिले की बयाना तहसील में कुंकन्द नदी को दो पहाड़ों के बीच रोककर यह बांध बनाया गया है। यह भरतपुर जिले का सबसे बड़ा बांध है तथा इस बांध से भरतपुर शहर को पेयजल आपूर्ति की जाती है।
  • उम्मेद सागर बांध- भीलवाड़ा जिले में स्थित है।
  • गरदड़ा बांध- बूंदी जिले में स्थित बांध।
  • पश्चिमी बनास योजना- सिरोही जिले की सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना।

राजस्थान की प्रमुख नहरें

1. गंगनहर-

यह राजस्थान की पहली सिंचाई परियोजना मानी जाती है। बीकानेर रियासत में महाराजा गंगा सिंह के शासन काल में 1922-27 की अवधि में गंगनहर का निर्माण हुआ। गंगनहर सतलज नदी से फिरोजपुर, पंजाब के निकट हुसैनीवाला से निकाली गई है। इस नहर से इन्दिरा गांधी फीडर तथा गंगनहर के बीच गंगनहर लिंक चैनल निकाली गई है। इस नहर ने गंगानगर जिले के शुष्क भागों को फलों के उद्यान व खाद्यान्न भण्डार में बदल दिया है।

2. गुड़गांव नहर-

इस नहर के निर्माण का उद्देश्य यमुना नदी के पानी का मानसून काल में उपयोग लेना है। आखेला (दिल्ली) के पास यमुना नदी से यह नहर निकाली गई है। यह नहर भरतपुर जिले की कांमा तहसील के जुरेरा गांव के समीप राजस्थान में प्रवेश करती है। राजस्थान में इस नहर की लम्बाई 35 मील है। इस नहर से भरतपुर जिले की कांमा व डीग तहसील में सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी।

आपका प्रश्न : मेरी पेयजल संबंधी आवश्यकताएं इंदिरा गाँधी नहर से पूर्ण होती है। आपकी पेयजल संबंधी आवश्यकताएं किस स्रोत से पूर्ण होती है ?
                           कमेंट करके अपना उतर जरूर बताएं। 
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सरकारी सेवा में पदस्थापित धीरज व्यास वर्षों से अध्यापन क्षेत्र में सक्रिय है। आप इंटरनेट पर हिंदी भाषा के प्रबल समर्थक होने के साथ साथ शिक्षा के महँगी होने के पुरजोर विरोधी है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को कम शुल्क में छात्रों तक पहुँचाना आपका ध्येय है।

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